28सितंबर: भगत सिंह जयंती पर विशेष: भगत सिंह को फांसी से नहीं बचा पाए थे गांधी!

पंकज कुमार श्रीवास्तव

8अप्रैल,1929को असेंबली में बम फेंकने के आरोप में भगत सिंह,सुखदेव और बटुकेश्वर दत्त को गिरफ्तार किया गया था।उनके पास वह पिस्तौल मिली थी,जिसकी गोलियों से लाहौर में पुलिस अफसर सांडर्स की हुई थी।उन्हें फांसी की सज़ा सांडर्स की हत्या के मामले में सुनाई गई थी।

7अक्टूबर,1930को भगत सिंह,सुखदेव और राजगुरू को फांसी की सजा सुनाई गई थी.उनकी फांसी के लिए 24मार्च,1931की तारीख तय की गई थी.कोर्ट ट्रायल और भूख हड़ताल की वजह से भगत सिंह और उनके साथी युवाओं के बीच में काफी लोकप्रिय हो गए थे. गांधी भारत के सबसे बड़े नेता थे.सबको गांधी से उम्मीद थी कि वो इस मामले में तुरंत कुछ करेंगे. भगत सिंह के समर्थक चाहते थे कि गांधी गांधी इरविन वार्ता की शर्तों में भगत सिंह की फांसी रोकना,शामिल करें.गांधी ने ऐसा नहीं किया.इसकी वजह उन्होंने यंग इंडिया अखबार में लिखे लेख में बताई.उन्होंने लिखा-कांग्रेस वर्किंग कमिटी भी मुझसे सहमत थी.हम इस बात की शर्त नहीं रख सकते थे कि अंग्रेजी हुकूमत भगत,राजगुरु और सुखदेव की सजा कम करे.मैं वायसराय के साथ अलग से इस पर बात कर सकता था.

गांधी के सामने परेशानी ये भी थी कि क्रांतिकारी खुद ही अपनी फांसी का विरोध नहीं कर रहे थे. गांधी की एक कोशिश थी कि भगत सिंह और साथी वादा करें कि वो आगे हिंसक कदम नहीं उठाएंगे.इसका हवाला देकर वो अंग्रेजों से फांसी की सजा रुकवा लें.लेकिन,ऐसा नहीं हुआ.गांधी ने आसफ अली को लाहौर में भगत सिंह और उनके साथियों से मिलने भेजा.वो बस एक वादा चाहते थे कि भगत सिंह और उनके साथी हिंसा का रास्ता छोड़ देंगे.इससे वो अंग्रेजों के साथ बात कर सकेंगे.लेकिन,आसफ अली और भगत सिंह की मुलाकात ना हो सकी.आसफ अली ने लाहौर में प्रेस को बताया-मैं दिल्ली से लाहौर आया,ताकि भगत सिंह से मिल सकूं.मैं भगत से एक चिट्ठी लेना चाहता था,जो रिवॉल्यूशनरी पार्टी के उनके साथियों के नाम होती.जिसमें भगत अपने क्रांतिकारी साथियों से कहते कि वो हिंसा का रास्ता छोड़ दें. मैंने भगत से मिलने की हर मुमकिन कोशिश की, लेकिन कामयाब नहीं हो पाया.

भगत सिंह खुद अपनी सज़ामाफ़ी की अर्जी देने के लिए तैयार नहीं थे.जब उनके पिता ने इसके लिए अर्ज़ी लगाई तो उन्होंने बेहद कड़े शब्दों में पत्र लिखकर इसका जवाब दिया था.गांधीजी उनकी सज़ा माफ़ नहीं करा सके,इसे लेकर गांधीजी से भगत सिंह की नाराजगी के साक्ष्य नहीं हैं.
गांधी और इरविन के बीच 17फरवरी से 5मार्च, 1931 के बीच बातचीत हुई.वार्ता के लिए निर्धारित मुद्दों में भगत सिंह की फांसी का मुद्दा नहीं था।5मार्च को हुए समझौते में अहिंसक तरीके से संघर्ष के दौरान पकड़े गए सभी कैदियों को छोड़ने की बात तय हुई.मगर,राजकीय हत्या के मामले में फांसी की सज़ा पाने वाले भगत सिंह सहित तमाम दूसरे कैदियों को माफी नहीं मिल सकी.

महात्मा गांधी यंग इंडिया में लिखते हैं
18फरवरी को वाइसरॉय इरविन के सामने भगत सिंह के बारे में बात करते हुए मैंने उनसे (लॉर्ड इरविन से)कहा ‘इसका हमारी वर्तमान बातचीत से कोई संबंध नहीं,हो सकता है ये मेरी तरफ से थोड़ी अनुपयुक्त बातचीत लगे.पर अगर आप इस माहौल को उचित समझें तो भगत सिंह की फांसी स्थगित कर देनी चाहिए.’
वाइसरॉय इरविन को ये बात बहुत अच्छी लगी थी. उन्होंने कहा-मुझे अच्छा लगा कि आपने ये बात मेरे सामने इस तरह से रखी.सजा का वापस लेना एक मुश्किल बात हो सकती है,लेकिन फांसी स्थगित करने पर विचार किया जा सकता है।
इरविन ने ब्रिटिश सरकार को भेजी अपनी रिपोर्ट में भगत सिंह की सजा और गांधी के बारे में कहा-गांधी चूंकि अहिंसा में यकीन करते हैं,इसीलिए वो किसी की भी जान लिए जाने के खिलाफ हैं.मगर उन्हें लगता है कि मौजूदा हालात में बेहतर माहौल बनाने के लिए ये सजा मुलतवी कर देनी चाहिए.’

ये सवाल उठ सकता है कि क्या गांधी सिर्फ भगत सिंह की फांसी स्थगित करने को लेकर प्रयास कर रहे थे?फांसी रुकवाने के लिए नहीं? इसका जवाब चंदरपाल सिंह के रिसर्च पेपर में मिलता है.कानूनी तौर पर प्रिवी काउंसिल के फैसले के बाद वाइसरॉय द्वारा फांसी रोका जाना संभव नहीं था.कांग्रेस पहले ही इसकी कानूनी संभावना तलाश चुकी थी.

29अप्रैल,1931 को विजय राघवचारी को लिखे पत्र में महात्मा गांधी ने स्वीकारा कि ‘कानूनविद तेज बहादुर ने वाइसरॉय से इस बात पर चर्चा की थी कि फांसी रोके जाने की कोई कानूनी संभावना है या नहीं,पर ऐसी कोई संभावना नहीं थी.
गांधी ये जान चुके थे कि कानूनी तौर पर प्रिवी काउंसिल के फैसले के बाद वाइसरॉय फांसी की सजा को पूरी तरह रोक नहीं सकते.इसलिए गांधी ने फांसी रोकने की जगह स्थगित(पोस्टपोन) करने पर जोर दिया.

महात्मा गांधी ने भगत सिंह की फांसी का मुद्दा दूसरी बार तब उठाया जब 19मार्च,1931को इरविन पैक्ट के नोटिफिकेशन को लेकर उनकी मुलाकात हुई.इरविन ने इस बातचीत को नोट भी किया था। बाद में इरविन ने गांधी को जवाब दिया-फांसी की तारीख आगे बढ़ाना,वो भी बस राजनैतिक वजहों से,वो भी तब जबकि तारीख का ऐलान हो चुका है,सही नहीं होगा.
एक और झटका लगने के बाद भी गांधी कोशिशों में लगे रहे.26मार्च से कराची में कांग्रेस का अधिवेशन होना था.गांधी को इस अधिवेशन में जाने के लिए निकलना था.लेकिन,21मार्च,1931को न्यूज क्रॉनिकल में रॉबर्ट बर्नेज ने लिखा-गांधी कराची के लिए रवाना होने में देर कर रहे हैं,ताकि वो भगत सिंह की सजा पर वायसराय से बात कर सकें. 21और22 मार्च को भी गांधी और इरविन की मुलाकात हुई.गांधी ने हर बार इरविन से भगत सिंह और साथियों की सजा रोकने की मांग की.इरविन ने वादा किया कि वो इस पर विचार करेंगे.
भगत सिंह पर अंग्रेज अधिकारी की हत्या का मामला था.ब्रिटिश सरकार उन्हें रिहा कर ये संदेश नहीं देना चाहती थी कि अंग्रेज अधिकारी की हत्या कर कोई बच सकता है.

23मार्च को यानि फांसी की निर्धारित तारीख से एक दिन पहले गांधी ने इरविन को एक चिट्ठी लिखकर कई कारण गिनाए और इस सजा को रोकने की अपील की.23मार्च,1931को लिखे पत्र में गांधी लिखते हैं कि

  • * आम भावना चाहे वो सही है या गलत, वो यही है कि फांसी रुकनी चाहिए. अगर सिद्धांत दांव पर न लगे हों, तो फर्ज होता है आम भावना का सम्मान करना.
  • * अगर फांसी रुकती है तो आंतरिक शांति बढ़ेगी. अगर फांसी नहीं रुकती है तो शांति भंग होने की संभावना काफी ज्यादा है.
  • * क्रांतिकारी पार्टी ने मुझे आश्वासन दिया है कि, ये जानें (भगत सिंह, राजगुरू, सुखदेव) अगर बच जाती हैं तो पार्टी अपने हाथ बांध लेगी. जाहिर अगर इस फैसले से हत्याएं रुक रही हैं तो इस सजा को खत्म करना मेरे विचार से कर्तव्य बन जाता है.’
  • * फांसी, एक न बदला जाने वाला फैसला है. पर अगर आपको लगता है कि इस फैसले में थोड़े भी बदलाव की संभावना है, तो मैं आपसे दोबारा इसकी समीक्षा करने का आग्रह करूंगा.
  • * अगर मेरी मौजूदगी जरूरी है तो मैं खुद भी आ सकता हूं. हालांकि मैं बोल नहीं सकता पर मैं जो कहना चाहता हूं उसे सुन और लिख सकता हूं.

लेकिन,23मार्च को सजा की मुकर्रर तारीख से एक दिन पहले ही भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी दे दी गई.
25मार्च,1931 को जब गांधी कांग्रेस अधिवेशन में हिस्सा लेने के लिए करांची पहुंचे,तो उनके ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन किया गया.गांधी मुर्दाबाद-गांधी गो बैक जैसे नारे लगे।इस विरोध को गांधी ने ‘उनकी’ गहरी व्यथा और उससे उभरने वाले गुस्से का हल्का प्रदर्शन बताया और उन्होंने कहा कि ‘इन लोगों ने बहुत गौरवभरी शैली में अपना गुस्सा दिखाया है.’

गांधीजी कहते हैं,’भगत सिंह की बहादुरी के लिए हमारे मन में सम्मान है.लेकिन,मुझे ऐसा तरीका चाहिए जिसमें खुद को न्योछावर करते हुए आप दूसरों को नुकसान न पहुंचाएं.’
वह कहते हैं-‘सरकार गंभीर रूप से उकसा रही है.लेकिन,समझौते की शर्तों में फांसी रोकना शामिल नहीं था.इसलिए इससे पीछे हटना ठीक नहीं है.

“मैं जितने तरीकों से वायसराय को समझा सकता था,मैंने कोशिश की.मेरे पास समझाने की जितनी शक्ति थी,वो मैंने इस्तेमाल की.23वीं तारीख़ की सुबह मैंने वायसराय को एक निजी पत्र लिखा, जिसमें मैंने अपनी पूरी आत्मा उड़ेल दी.”
“भगत सिंह अहिंसा के पुजारी नहीं थे,लेकिन हिंसा को धर्म नहीं मानते थे.इन वीरों ने मौत के डर को भी जीत लिया था.उनकी वीरता को नमन है. लेकिन,उनके कृत्य का अनुकरण नहीं किया जाना चाहिए.खून करके शोहरत हासिल करने की प्रथा शुरू हो गई,तो लोग एक दूसरे के कत्ल में न्याय तलाशने लगेंगे.”

कांग्रेस अधिवेशन में अपने भाषण में गांधी ने इस बात का जिक्र किया.उन्होंने कहा-मैं भगत सिंह को नहीं बचाना चाहता था,ऐसा शक करने की,कोई वजह नहीं हो सकती.मैं वायसराय को जितनी तरह से समझा सकता था,मैंने समझाया.मैंने हर तरीका आजमा कर देखा.23मार्च को मैंने वायसराय के नाम एक चिट्ठी भेजी थी.इसमें मैंने अपनी पूरी आत्मा उड़ेलकर रख दी.लेकिन मेरी सारी कोशिशें बेकार हुईं.”

कांग्रेस में भी भगत सिंह की फांसी को लेकर नाराजगी थी.कांग्रेस अधिवेशन में पं जवाहरलाल नेहरू ने एक प्रस्ताव रखा था,जिसका मदन मोहन मालवीय ने भी समर्थन किया था.महात्मा गांधी ने इस प्रस्ताव के लिए नेहरू को चुना,क्योंकि युवाओं में नेहरू ज्यादा लोकप्रिय हैं.

भगत सिंह की फांसी के बाद कांग्रेस अधिवेशन में पेश प्रस्ताव यूं था-‘कांग्रेस किसी भी रूप में राजनीतिक हिंसा से खुद को अलग और अस्वीकार करते हुए,सरदार भगत सिंह और उनके साथियों, सुखदेव और राजगुरु की बहादुरी और बलिदान के साथ है,साथ ही उनके परिवारों के साथ शोक व्यक्त करती है.कांग्रेस की राय है कि ये फांसियां राष्ट्र की मांग का जानबूझकर किया गया उल्लंघन हैं.’

इन तथ्यों के आलोक में ऐसा नहीं लगता कि गांधी ने भगत सिंह की फांसी को रुकवाने की कोशिश नहीं की.लेकिन वो कामयाब ना हो सके यह एक तथ्य है.

प्रेषक-पंकज कुमार श्रीवास्तव
स्नातक पत्रकारिता, स्नातकोत्तर प्रबंधन,
सेवानिवृत्त प्रबंधक झारखण्ड राज्य ग्रामीण बैंक डाल्टनगंज पलामू

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